प्रखर वक्ता और जनसुलभ नेता थे उपेंद्रनाथ दास

आपातकाल में काटी थी 18 महीने तक जेल की सजा

प्रमोद कुमार

हजारीबाग (झारखंड) : जयप्रकाश के सपनों को साकार करना है। कानून सर्वोपरि है। संविधान से ऊपर कोई नहीं। मौलिक अधिकारों को निलंबन करना तानाशाही को आमंत्रित करना है…… ऊक्त पंक्तियां स्वर्गीय उपेंद्रनाथ दास के ओजपूर्ण भाषण के कुछ अंश है।अपने भविष्य को दांव पर लगाकर उन्होंने सब कुछ देश के लिए समर्पित कर दिया था। 1974 में जब जेपी आंदोलन की लहर पूरे देश में फैल रही थी उस समय उपेंद्रनाथ दास संत कोलंबा कॉलेज के विद्यार्थी थे। अपने छात्र मित्रों के साथ तानाशाही के खिलाफ मशाल लेकर दिल्ली के तख्त को चुनौती देने के लिए सडको पर उतर गए थे। उनका भविष्य क्या होगा, परिवार का क्या होगा, सारी चिंताएं छोड़कर देश हित के लिए स्वर्गीय दास ने अपने को होम कर दिया था। 18 महीने जेल में रहे। मिसा और डी आई आर की धाराएं उन पर आरोपित की गई। मार्च 1974 में उन्हें गिरफ्तार करने वाले अफसर कोई मामूली व्यक्ति नहीं बल्कि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ज्योति कुमार सिन्हा थे। सब कुछ ठहर सा गया था। हजारीबाग केंद्रीय कारागार में एक दिन के लिए अटल बिहारी वाजपेई कैदी के रूप में आए थे। उपेंद्र जी से कुछ बातें हुई और दूसरे ही दिन उन्हें भागलपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया।
आपातकाल हटने के बाद जब चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तब कई दलों को मिलाकर एक राष्ट्रीय दल का गठन किया गया जिसे जनता पार्टी का नामकरण दिया गया था। उपेंद्रनाथ दास को 1977 में सिमरिया विधानसभा का टिकट दिया गया। उन्होंने कांग्रेसी प्रत्याशी को बुरी तरह पराजित किया था। पुनः 1990 से 1995 और 1995 से 2000 तक भाजपा के विधायक के रूप में उन्होंने सिमरिया क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उसे समय झारखंड बिहार से अलग नहीं हुआ था। झारखंड निर्माण के बाद 2005 से 2007 तक सिमरिया विधानसभा का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया। यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण रहा क्योंकि 13 अगस्त 2007 को उनका निधन हो गया। उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका।
अर्जुन मुंडा जी के मुख्यमंत्रित्व के काल में उपेंद्रनाथ दास जी को संसदीय सचिव बनाया गया था।
बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी, लोकनायक के अंतरंग शिष्य और जन-जन के दिलों में राज करने वाले उपेंद्रनाथ दास को पुण्यतिथि के अवसर पर शत-शत नमन…..

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