श्रीराम उत्सव : श्याम जीरा के देशी धान के चावल से बने खीर का लगेगा प्रभु श्रीराम को भोग
पत्थलगडा के बरवाडीह में तीन सौ वर्षों से हो रही है श्रीराम जी की पूजा
1735 ई. में तिवारी परिवार ने भगवान श्रीराम की मूर्ति की की थी स्थापना
चेतन पाण्डेय
चतरा : अयोध्या में बहु प्रतीक्षित श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में राम उत्सव का माहौल है। शहर से लेकर गांव देहात तक लोग राम भक्ति में रमे हुए हैं। चंहू ओर राम धुन की बयार बह रही है। जहां कभी राम धुन नहीं पहुंचती थी वहां भी 22 जनवरी को श्रीराम की पूजा अर्चना और महाआरती की तैयारी चल रही है। झारखंड के चतरा जिले के पत्थलगडा प्रखंड के दुंबी-बरवाडीह गांव में पिछले 300 सालों से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पूजा अर्चना हो रही है। इतना ही नहीं यहां प्रत्येक दिन भगवान श्री राम को विशेष नवेद्य भोग भी लगाए जा रहे हैं। भगवान श्री राम को संध्या में आरती भी उतारी जाती है। बरवाडीह में 300 साल प्राचीन श्री राम मंदिर है। 1735 ई में यहां भगवान श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी। तब से लेकर आज तक यहां प्रभु श्री राम की मृत्यु पूजा अर्चना हो रही है। चतरा जिले का यह पहला और सबसे प्राचीन राम मंदिर है। जहां भगवान श्री राम माता जानकी विराजमान हैं। यहां राम भगवान की नित्य पूजा-अर्चना होती है। सुबह और संध्या में विशेष पूजा-अर्चना के बाद भोग लगाई जाती है। उसके बाद विशेष आरती लगाई जाती है। तत्पश्चात प्रसाद का वितरण किया जाता है।आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के दिन यहां भी भगवान श्री राम की विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। भगवान श्री राम को यहां श्यामजीरा के देशी धान से बने चावल के खीर का भोग लगाया जाएगा। तत्पश्चात् भगवान का महाआरती उतारी जाएगी। अनुष्ठान पूजन को लेकर यहां विशेष तैयारी की जा रही है।
तिवारी परिवार ने स्थापित की थी भगवान की प्रतिमा
यहां भगवान की पूजा के लिए पुजारियों का एक दल सेवा में तत्पर है। दुम्बी और बरवाडीह के तिवारी परिवार के द्वारा माता सीता के साथ प्रभु श्रीराम की पूजा-अर्चना सदियों से की जा रही है। ठाकुरबाड़ी में श्रीराम जी के साथ-साथ राधा कृष्ण और शालिग्राम देव की भी पूजा अर्चना नित्य की जाती है।
चैत्र माह में होता है अनुष्ठान का विशेष आयोजन
चैत्र माह में रामनवमी के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव यहां पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद भंडारे का भी आयोजन होता है। प्रसाद लेने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। यहां स्थापित प्रभु श्रीराम माता सीता, राधा-कृष्ण व अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा 300 वर्ष प्राचीन बताई जाती है। इसी परिवार के सदस्य सुरेश तिवारी ने बताया कि यहां का इतिहास तीन सौ वर्ष प्राचीन है। उस समय के जमींदार सीरी किशुन तिवारी, हेम नारायण तिवारी और लालधारी तिवारी ने ठाकुरबाड़ी मंदिर का निर्माण कराया था। उन्होंने कई बाग-बागिचा भी लगाये थे। आसपास के गांवों के सार्वजनिक विकास के कई कार्य किए थे। जिसकी चर्चा आज भी होती है। उन्होंने उस समय प्राण-प्रतिष्ठा के मौके पर अखंड भंडारा यज्ञ कराया था और ग्यारह सौ गायों का दान स्वर्ण मुद्राओं के साथ किया था।
चतरा जिले का है सबसे प्राचीन राम मंदिर
मंदिर के पूजारी आचार्य चेतन पांडेय ने बताया कि भगवान श्रीराम व अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा काफी प्राचीन है। प्रतिमा अष्टधातु से बनी हुई है। यहां नित्य प्रतिदिन भगवान के विग्रह की पूजा पूरे विधि विधान से होती है। पूरे चतरा जिले में सबसे प्राचीन राम जी का मंदिर सम्भवतः यहां ही है।