लोक परंपरा: यहां गीतों से पूजे जाते हैं भगवान सूर्य नारायण

कोई मांगता है अन-धन तो कोई मांग का सिंदूर

हर विधि पर पिरोए जाते हैं पारंपरिक लोकगीत, आस्था, श्रद्धा और भक्ति की संगम में लगती है डुबकी

चेतन पाण्डेय

चतरा: मंत्र, स्तुति, आरती और पाठ परायण हर व्रत और पूजा में होती है। परंतु ऐसा भी पर्व है जिसमें मंत्र, स्तुति नहीं बल्कि लोकगीतों की लोरी का महत्व होता है। यह पर्व है सूर्य उपासना का सबसे बड़ा महापर्व छठ। इस व्रत में व्रती लोकगीतों की लोरी गाकर भगवान को प्रसन्न करते हैं और अपनी मन्नतें मांगते हैं। नेम-निष्ठा व सूर्य उपासना का महापर्व छठ परंपरा, संस्कृति और लोक आस्था का पवित्र त्यौहार रहा है। व्रत करने वाली व्रतियों की माने तो व्रत में हर विधि पर जुड़े अलग-अलग गीतों का अपना एक अलग महत्व है। कोई मायके से ससुराल तक की सुख शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना करती है। तो कोई सभवा में ब‌इठन के बेटवा मांगिला,गोड़वा दबन के पतोह ए दीनानाथ… रुनकी झूनकी बेटी मांगिला पढ़ल पंडितवा दामाद ए दीनानाथ…ससूरा में मांगिला अनधन सोनवा न‌ईहर में सहोदर जेठ भा‌ई…।

घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा…

महापर्व की रुआत होती छठ घाट की सफाई से। घाट की घास को काटना, खरपतवार को हटाना और घाट सजाने के दौरान घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा,बोअब नेबूवा… आदि लोकगीत गाने की परंपरा रही है।

म‌इया खोलहूं ना केवड़िया हे दर्शनवा देहू न…

व्रत के दिन अर्घ्य देते समय सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए घाट पर बैठी महिलाएं कई गीत गाती हैं। इनमें म‌‌इया खोलहूं ना केवड़िया हे दर्शनवा देहू ना…, सोने के खड़‌उवा ऐ दीनानाथ तिलक लिलार…, हाथ सटकुनिया ऐ दीनानाथ दुअरिया लेले ढाभ…सबके डलियवा ऐ दीनानाथ लिहल मंगाय, बांझिन डलियवा ऐ दीनानाथ पड़ले तवाय…,जोड़े-जोड़े सुपवा तोहे चढ़‌इवो हो म‌ईया खोलहूं ना किवाड़ हो दर्शनवा देहू न…, डोमिन बेटिया सूप लेले ठाढ बा उग हो सुरूज देव भेल अरघिया के बेर…, भोरवे में नदिया नहाइला आदित मनाईला,बाबा फूलवा अछतवा चढ़ाइला सब गुनवा गाईला, बाबा अंगने में मांगिला अंजोर ई मथवा नवाईला हो…, आदि गीत सूर्यदेव को समर्पित किए जाते हैं।

ले ले अईह हो भ‌ईया केरवा के घवदिया…

उसके बाद शुरू होती है फल और अन्य पूजन सामग्रियों की खरीदारी का। इसके लिए व्रती अपने भाई से ये गीत गाकर गुहार लगाती हैं, मोरा भ‌ईया जाईला महंगा मुंगेर लेले अ‌ईया हो भ‌ईया गेहूं के मोटरिया,अबकी के गेहूंवा महंग भ‌ईले बहिनी,छोडी देहू गे बहिनी छठी के ब्रतिया,नाही छोड़ब हो भ‌ईया छठीया ब्रतिया लेले अईया हो भ‌ईया केरवा के घवदिया। पटना के हाट पर नारियल, नरियल कीनबे जरूर, हाजीपुर केरवा बेसहबे अरघ देबे जरूर…।

कांचही ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय…

व्रत के दिन अर्घ देने के लिए आंगन में दौरा सजाने के समय व्रती गाती हैं -केरवा फरेला घवद से ओहपर सूग्गा मेडराय,मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरछाय…, कांचही ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाय…, होई न बलमजी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचा‌ई…चार ही चक्का के मोटरवा, मोटरवा ब‌ईठी ससुरजी, पेनी हाली-हाली धोतिया पितरिया भ‌ईल अरघ के बेरिया…।

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