डेस्क | चतरा: झारखंड के चतरा जिले के प्रतापपुर प्रखंड मुख्यालय से 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर है ननई गांव। प्रखंड का सबसे बड़ा प्राकृतिक जल स्रोत ननई डैम है जो 10 से 12 एकड़ में फैला हुआ है। इन दिनों डैम सूखने के कगार पर पहुंच गया है। 60 के दशक में डैम का निर्माण हुआ था। पिछले वर्ष पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण इस बार यहां की स्थिति बदली हुई है। ननई डैम के किनारे काफी संख्या में पक्षियों का बसेरा है।
आसपास के जंगलों के पशु-पंक्षियों का प्यास यही डैम बुझाता है। जब सभी प्राकृतिक जलस्रोत सूख जाते हैं तो यह डैम पंक्षियों का बसेरा बन जाता है। इस वर्ष जल स्रोत नाम मात्र का रह गया है। पशु पक्षियों के लिए यह दुखद खबर है। अभी फिलहाल छोटी सिल्ली जिसे लेसर व्हिसलिंग डक कहा जाता है काफी संख्या में आसपास में है। यहां इंडियन ओपन बिल स्टॉक नामक पक्षी भी काफी संख्या में है। जो छोटी सिली से कुछ बड़े होते हैं। छोटी सिल्ली जब उड़ते हैं को विसलिंग करते हैं। उनकी चहचहाहट से माहौल खुशनुमा बन जाता है। ननई डैम के आसपास कई दुर्लभ पक्षियों का भी बसेरा है। यहां का वातावरण इन पक्षियों के अनुकूल है। साथ ही कई अन्य पक्षियों का भी यहां सालों भर बसेरा रहता है।
ये पक्षी आसपास के जंगलों में रहते हैं और भोजन की तलाश में और गर्मी से निजात पाने के लिए ननई डैम में दिनभर कलरव करते रहते हैं। यहां कई जलीय जंतुओं का भी बसेरा है। डैम इस सीजन में सूखने के कगार पर पहुंच गया है। जिससे इनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। जिससे पर्यावरणविद चिंतित हैं।
सतेंद्र प्रसाद की रिपोर्ट